वो नौ महीने हिंदी कविता । Heart touching Hindi Poetry on Pregnancy Experience । Dolafz

वो नौ महीने ।

Heart touching Hindi Poetry on Pregnancy Experience । Dolafz

वो नौ महीने हिंदी कविता । Heart touching Hindi Poetry on Pregnancy Experience । Dolafz

वो नौ महीने हिंदी कविता । Heart touching Hindi Poetry on Pregnancy Experience । Dolafz

 

जब एक स्त्री गर्भवती होती है। तब उसे कुछ अलग अनुभव होते हैं जिनकी व्याख्या शब्दों में शायद सम्भव नहीं है ।

फिर भी मैंने कोशिश की है….

 

वो नौ महीने बड़े ग़ज़ब के थे…

चंदा की सारी चाँदनी, सूरज की सारी गर्माहट मुझमें समा गई 

और एक दिन मेरे अस्तित्व की परछाईं मुझमें समा गई 

 

डर और यक़ीन की ऐसी मनोदशा जिसका वर्णन असम्भव था 

ख़ुशी इतनी कि दिल में न समाए 

ग़ुरूर इतना कि  चाँद भी मेरे आगे शरमाये 

 

सारा बदन जैसे चारों मौसम एक साथ एक जगह 

क़ुदरत की सारी शक्तियाँ मुझमे समा गईं 

 

न जाने कौन सी शक्ति कानों  में हर दिन मेरे गुन गाने लगी 

मेरे अस्तित्व को हवायें भी सहलाने लगीं 

 

ईश्वर से इससे बड़ा मिलन कोई हो ही नहीं सकता 

कि  उसने चुना मुझे  अपनी अमानत की हिफ़ाज़त के लिए 

 

फिर हर रोज़ न जाने कौन से रूप में आकर वे मेरा हाल पूछते 

दुर्गा काली की शक्तियाँ मुझमे समाने लगीं 

 

हर दिन छत पर नीम अमृत बरसाने लगी 

उसके हर एक पत्ते से मुझे नन्ही सी जान की ख़ुशबू आने लगी 

 

ख़ुद अपना ख़याल इतना सच मानों पहले कभी नहीं रखा 

घरवालों को भी मेरी चिंता बहुत सताने लगी 

 

जैसे जैसे दिन गुज़रने लगे मेरे बच्चे के साथ मेरे अरमान भी बढ़ने लगे 

तस्वीर बनाती रहती मन में, कौन है जो इतनी शांति दे रहा तन में 

 

तकलीफ़े ढेर सारी कभी उलटी तो कभी बदन का दर्द 

इन सब के बीच अंदर कहीं सारी प्रकृति का समावेश 

 

इन दिनों दुनिया से परे कुछ अलग से एहसास हुए 

जैसे अकेलेपन में भी एक सम्पूर्णता का एहसास 

अंदर से निखारकर बना रहा था मुझे ख़ास 

 

प्रकृति के इतने सुंदर नज़ारे पहली बार देखे 

पक्षी, नीम के पेड़ पर बारिश का पानी

हवाओं की स्वतंत्रता मुझमें समा गई 

 

बारिश की हल्की बूँदों में मैं जब नन्ही सी जान के साथ 

संभल कर भीगती हवाओं से बातें करती

 

बच्चों का शोर, पक्षियों की चहचहाट 

मानों आसमान से बूँदों की जगह ख़ुशियाँ हों टपकती 

 

और एक दिन तारे कुछ ज़्यादा चमके 

इस दिन आसमान का रंग कुछ अलग सा था 

फिर क्या था…

सारे बदन में जैसे बिजली दौड़ रही हो 

इतनी असहनीय पीड़ा के साथ – साथ 

सुकून के कुछ ऐसे पल जो मुझे मुझसे मिलवाते 

 

रह – रह कर बिजलियाँ बदन में दौड़ती रहीं 

आँखों के सामने अँधेरा

और मन में प्रकाश की किरण 

और एक अजीब सी उलझन 

 

मेरे नख़रे और डॉक्टरों के ग़ुस्से के साथ क़रीब डेढ़ घंटे की लड़ाई के बाद 

जब एक पल को लगा जैसे मेरी साँस रुक गयी 

तभी अचानक से एक किलकारी कानों में पड़ी 

और ईश्वर ने अपनी अमानत मुझे सौंप दी 

 

( वो सारे नौ महीने वाक़ई बहुत ख़ास थे उन दिनों के एहसास दिल में रह गए और आज वे एहसास ये कविता मुझसे कह गए ।

साधारण सी औरत दुर्गा, काली के रूप से परिचित हो गई  शायद उन दिनों मेरे अस्तित्व से मेरी पहचान हो गयी 

एक अलग सा अनुभव जिसकी व्याख्या सम्भव ही नहीं ।

 

लिखने बैठी तो सारे नौ महीनों के एहसास मुझमें समा गए । बहुत सारी तकलीफ़ों के बाबजुद जो अंदर चल रहा था ।

बहुत अदभुत था । शुक्रगुज़ार हूँ मैं अपनी कि मेरा सारा ध्यान बाहर नहीं अंदर था ।

 

मगर अब ईश्वर से वैसी मुलाक़ात नहीं है ।

चाँद, तारे, आसमान, बारिश में उतनी ख़ास  बात नहीं है )

 

 

MUST  READ

 

न जाने क्या है इस खामोशी का सबब

कुछ नहीं कहना है कुछ नहीं सुनना है

तनहाँ सी ज़िंदगी

तुम भी क्या ख़ूब कमाल करते हो 

हमारे देश की महान नारी 

क्य वाक़ई में भारत आज़ाद हो गया है 

ये ख़ामोशी ये रात ये बेदिली का आलम 

कभी कभी अपनी परछाईं से भी डर लगता है 

मैंने चाहा था चलना आसमानों पे 

कविता लिखी नहीं जाती लिख जाती है 

अभी अभी तो उड़ान को पंख लगे हैं मेरी 

 

 

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