मंजिल तक विरले ही जाते हैं । Motivational Hindi story on achieve goal
एक बार की बात है। एक गुरूजी थे । जब वे सौ वर्ष के हुये, तो उन्होंने सोचा अब तो मैं वृद्ध हो गया हूँ ।
अब मुझे सांसारिक मोह माया छोड़कर देना चाहिए ।
उन्होंने तय किया कि अब मैं योग समाधि लगाकर
शरीर त्याग दूँगा ।
लेकिन इससे पहले उन्हें एक आवश्यक काम करना बाकी था ।
वो था किसी को आश्रम का उत्तराधिकारी घोषित करना ।
गुरूजी की सेवा में एक शिष्य पूरी निष्ठा में एवं समर्पण के साथ जुटा था ।
गुरु ने उसे आज्ञा दी, कि वह पहाड़ पर स्थित आश्रम से नीचे जाए एवं वहां पर जो लोग भी आध्यात्म की राह पर
चलने के इच्छुक हों ऐसे सौ युवकों को लेकर आए।
शिष्य ने गुरु को प्रणाम किया और कोई सवाल किये बग़ैर चल पड़ा ।
राह में उसके मन में कोई प्रश्न उठे ।
मगर उसने सोचा गुरु ने भेजा है, तो कुछ सोच समझकर ही भेजा होगा । Motivational Hindi story on achieve goal
आखिकार शिष्य नीचे तराई में गया और बड़ी मेहनत के साथ सौ युवक एकत्र किये
और उन्हें लेकर आश्रम के लिए रवाना हो गया।
मार्ग में उसने देखा कि एक राज्य में मातम मचा था । उन्होंने पता किया कि आख़िर हुआ
क्या है तभी उस राज्य का एक युवक निकला उसने बताया
राज्य की अस्सी कन्याओं की बारात को लेकर एक जहाज समुद्र में डूब गया है ।
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राजा ने घोषणा कर दी कि जो उन युवतियों से शादी करेगा, उसे अपार संपत्ति मिलेगी ।
यह सुनते ही सौ में से अस्सी युवकों ने शिष्य का साथ छोड़ दिया और विवाह करने चल पड़े ।
अब सिर्फ़ 20 युवक बचे जो शिष्यों के साथ आगे बढ़े । रास्ते में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ।
धीरे- धीरे सभी हिम्मत हार गये । एक एक करके सभी ने साथ छोड़ दिया
जब शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा,तो उसके साथ मात्र एक युवक था ।
जाते ही उसने गुरु से कहा-गुरुवर, शुरू में मेरे मन में कई संदेह उठ रहे थे,
पर अब मैं समझ गया, आपने क्यों सौ लोगों को लाने के लिये कहा था ।
मैं यह जान गया हूँ कि मंजिल की ओर निकलते सौ ही हैं , पर पहुँचता एक ही है |
उसने गुरु को प्रणाम किया ।
गुरुजी ने भी उसे उठाकर अपने ह्रदय से लगा लिया ।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जब भी हम किसी कार्य को शुरू करते हैं
तो हमारी तरह कई लोग उस कार्य को कर रहे होते हैं |
लेकिन कई लोग छोटी- छोटी मुश्किलों से घबराकर काम को अधूरा छोड़ देते हैं|
कई लोग ये सोचते हैं कि इतने सारे लोग इस काम को कर रहे हैं
पता नहीं मैं कर पाउँगा या नहीं मुझसे भी बेहतर लोग होंगे ।
लेकिन कोई एक जो बिना किसी परवाह के दूसरों पर ध्यान दिए बिना
आगे बढ़ता जाता है। वह मंज़िल को पा लेता है ।
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