जब मुख्य न्यायाधीश बने लाओत्से । Lao Tzu prerak prasang

जब मुख्य न्यायाधीश बने लाओत्से । Lao Tzu prerak prasang

जब मुख्य न्यायाधीश बने लाओत्से । Lao Tzu prerak prasang

जब मुख्य न्यायाधीश बने लाओत्से । Lao Tzu prerak prasang

 

लाओत्से चीन के एक महान दार्शनिक थे । चीन में लाओ-सू एक सम्मान दिलाने वाली उपाधि है ।

 जिसमें ‘लाओ’ का अर्थ ‘आदरणीय बृद्ध ‘और ‘सू’ का अर्थ ‘गुरु ‘है।

लाओत्से ने इंसान और भगवान् के बीच एक संबंध स्थापित करने की कोशिश की ।

 

“वे साफ़ कहते थे ‘कि  अगर आप भगवान् को पाने की इच्छा रखते है, तो आपको ज्ञान की नहीं,

भक्ति करने की आवश्यकता है और अगर आप ज्ञान को पाकर भगवान को पाने की कल्पना करते है,

तो इसका मतलब है कि आप ख़ुद को धोखा दे रहे है “

 

आइये इस महान दार्शनिक के जीवन के एक प्रेरक प्रसंग के बारे में जानते है ।

 

चीन के राजा ने लाओत्से को अपने दरबार में बुलाया 

राजा ने उनसे अपने राज्य का मुख्य न्यायाधीश बनने की इच्छा ज़ाहिर की ।

 

राजा ने कहा-कि पूरे संसार में आप जैसा बुद्धिमान कोई और नहीं है 

 

यदि आप जैसा व्यक्ति न्यायाधीश बन जाये , तो उसका राज्य पूरे देश में एक आदर्श राज्य बन जायेगा ।

हालाँकि , पहली बार लाओत्से  ने मुख्य न्यायाधीश बनने से इनकार कर दिया ।

लेकिन राजा भी अपनी बात पर अडिग था । वह लाओत्से को न्यायाधीश  के पद पर देखना चाहता था ,

इसीलिए वह बार-बार लाओत्से से अनुरोध  करता रहा ।

 

राजा के बार-बार कहने पर लाओत्से ने कहा कि “अगर वह राज्य के मुख्य न्यायाधीश बनते है, तो

या तो वह न्यायाधीश बने रहेंगे या तो राज्य की कानून व्यवस्था बनी रहेगी । 

इस दो चीजों के अलावा कुछ भी संभव नहीं है ।

बावजूद इसके  लाओत्से न्यायाधीश बना दिये गये ।

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पहले ही दिन जब वह न्यायाधीश बने । एक चोरी का मामला सामने आया । 

असल में एक चोर ने राज्य के सबसे धनी आदमी के घर चोरी की थी ।

 

उसकी जो संपत्ति थी उसका लगभग आधा धन चोरी हो गया था । 

लाओत्से ने गौर से दोनों पक्षों को सुना और फिर फैसला सुनाया ।

यह धनी व्यक्ति और चोर दोनों को छह-छह माह की की सजा दी जाये।

 

ये फैसला सुनते  ही सब चौंक गए । सबसे ज्यादा अचम्भा तो देश के राजा को हुआ ।

जो लाओत्से को न्यायाधीश बनाने पर तुला था ।

 

धनी व्यक्ति ने लाओत्से के  फ़ैसले पर आवाज़  उठाते हुए  कहा – कि आखिकार आप कहना क्या चाहते है ?

चोरी  भी मेरे घर हुयी है और आप मुझे ही सजा सुना रहे है । मेरा क्या दोष है ?

 धन मेरा चुराया गया है । चोर आपके सामने खड़ा है ।

फिर मैं दोषी कैसे ?”यह कैसा न्याय है?

 

लाओत्से ने कहा कि मुझे लगता है कि मैंने अभी भी चोर के प्रति अन्याय ही किया है । 

तुम इस चोरी के सबसे बड़े जिम्मेदार हो ।

 

                                                         Lao Tzu prerak prasang

 

तुम्हें तो चोर से भी ज्यादा बड़ी सजा मिलनी चाहिए । तुमने ज़रूरत से भी ज्यादा धन का

संचय कर समाज के एक बड़े तबके को संपत्ति से वंचित कर दिया है ।

“तुम धन संचय करने की लालसा से भरे हुए हो ।

 

तुम्हारे अंदर के लालच ने इस देश में चोरों को प्रोत्साहन दिया है “

“तुम इस चोर से ज्यादा बड़े गुनाहगार हो”

 

तो दोस्तों ऐसे थे महान दार्शनिक लाओत्से के विचार 

 

 

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