बशीर बद्र की मशहूर ग़ज़लें । Basheer Badra Shayari in Hindi

बशीर बद्र की मशहूर शेर |

Basheer Badra Shayari in Hindi

बशीर बद्र की मशहूर ग़ज़लें  । Basheer Badra Shayari in Hindi

बशीर बद्र की मशहूर ग़ज़लें । Basheer Badra Shayari in Hindi

 

मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है
ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई हैं

ख़ुदा से रोज तुम को माँगता हूँ
मेरी चाहत इबादत हो गई है

बशीर बद्र एक ऐसे शायर जिन्होंने शायरी में एक बड़ा मक़ाम हासिल कर कामयाबी की बुलंदियों को छुआ। और आज भी वे अपनी उम्दा शायरी के लिए जाने जाते हैं। अत्यंत सरल भाषा और शब्दों की ऐसी पकड़ शायद ही कहीं देखने को मिलती है। उनकी ग़ज़ल इस क़दर दिल को छू  जाती हैं कि उन्हें बार सुनने का मन करता है । आज मैं उनकी कुछ मशहूर ग़ज़ले आपके साथ Share करने जा रही हूँ ।

1

खुदा हम को

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे

अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में

सदा सिसकियों की सुनाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें

असीरों को ऐसी रिहाई न दे

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है

रहे सामने और दिखाई न दे

2 :

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई

मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई

मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में

मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले

न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई

तिरे हाथ से मेरे होंठ  तक वही इंतिज़ार की प्यास है

मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं

तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई

3:

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा

मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो

मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ

अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है

तुम्हारे बा’द ये मौसम बहुत सताएगा

4 :

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे

बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था

फिर उस के बा’द मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने

बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी

वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला       

बशीर बद्र की मशहूर ग़ज़लें । Basheer Badra Shayari in Hindi

5 :

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया

काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के

दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए

लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना!

आईना बात करने पे मजबूर हो गया

दादी से कहना उस की कहानी सुनाइए

जो बादशाह इश्क़ में मज़दूर हो गया

सुब्ह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल

वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया

कुछ फल ज़रूर आएँगे रोटी के पेड़ में

जिस दिन मिरा मुतालबा मंज़ूर हो गया

6 ;

न जी भर के देखा न कुछ बात की

बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं

नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई

ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की

मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का

बरसती हुई रात बरसात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं

कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

7 :

मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो

मेरी तरह तुम भी झूठे हो

इक दीवार पे चाँद टिका था

मैं ये समझा तुम बैठे हो

उजले उजले फूल खिले थे

बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो

मुझ को शाम बता देती है

तुम कैसे कपड़े पहने हो

दिल का हाल पढ़ा चेहरे से

साहिल से लहरें गिनते हो

तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे

बच्चों सी बातें करते हो 

Basheer Badra Shayari in Hindi

8 :

परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता

किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना

जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता

मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है

कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता

९ :

जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है

यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए

यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है

यूँ प्यार नहीं छुपता पलकों के झुकाने से

आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है

ख़ुश-रंग परिंदों के लौट आने के दिन आए

बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है

जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

१० :

हँसी मा’सूम सी बच्चों की कॉपी में इबारत सी

हिरन की पीठ पर बैठे परिंदे की शरारत सी

वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को

लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी

उदासी पत-झड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती

पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी

सजाए बाज़ुओं पर बाज़ू वो मैदाँ में तन्हा था

चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी

मेरी आँखों मेरे होंठों  पे ये कैसी तमाज़त है

कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी

 

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