चंचल नदी | Emotional Hindi Story Of River | Environment Day Special

चंचल नदी |Emotional Hindi Story Of River|Environment Day Special

 चंचल नदी | Emotional Hindi Story Of River | Environment Day Special

चंचल नदी | Emotional Hindi Story Of River | Environment Day Special

मैं नदी हूँ | पर्वत मेरे पिता है और बर्फ मेरी माता है|

गर्मी होते ही बर्फ पिघलने लगे और मेरा जन्म हुआ |

जन्म लेते ही मैं अपने माता पिता से बिछुड़ गयी |

लोग मुझे प्यार से सरिता, तटिनी, तरंगिणी आदि

नामों से पुकारते है |

आगे बढ़ना मेरा स्वभाव है | पीछे मुड़कर मैंने सीखा नहीं |

मेरा मार्ग कठिनाईयों से भरा हुआ है |

परन्तु चंचलता से मैंने अपना रास्ता खुद बनाया |

कभी मैं झरनों में पहाड़ों के नीचे खाई में गिरी

कभी पत्थरों ने मेरा मार्ग रोका, कभी में गुफाओं में भटक गयी|

परन्तु मैं घबराई नहीं |

मैंने सब संकटों का सामना डटकर किया |

मैं सबसे टकराती हुई आगे बढ़ती गयी |

मेरी गति को रोकना असंभव है |

धीरे-धीरे मैं समतल मैदानों में आ गयी | अब मेरी गति धीमी हो गयी |

यहाँ मेरा बचपन और चंचलता समाप्त हो गयी|

अब मैंने युवावस्था प्राप्त कर ली है |

अब मुझे अपनी माँ के कहे शब्द याद आने लगे है कि तुम्हारा जन्म तो सबकी सेवा करने के लिए

हुआ है | तुम्हें अपने शीतल जल से वनों, गांवों और नगरों में लोगों की प्यास बुझानी है |

अपनी माँ के वचनों को पूरा करने की मैंने मन में ठान ली है|

मैदानों में धीरे धीरे मेरा विस्तार बढ़ता गया |

मेरे जल ने अनेक लोगों की प्यास बुझाई है |

खेतों को सींचकर मैंने धन- धान्य उगाया |

मेरे जल का प्रयोग कर मनुष्य ने बिजली का निर्माण

किया| अपनी माँ के वचनों को पूरा कर मैं अपना जीवन सार्थक हूँ |

परिवर्तन मेरे जीवन का नियम है |

कभी-कभी जब मैं क्रोध में आती हूँ

तो मैं अपने किनारे तोड़ती हुयी हुयी खेतों, नगरों में खेतों, गांवों और नगरों में

बाढ़ के रूप में घुस जाती हूं|

 

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न जाने कितने लोगों की चली हैं, कितनी संपत्ति

नष्ट हो जाती है, परन्तु इस भीषण संहार को मैं भुला नहीं सकती और सूख जाती

हूँ| वर्षा ऋतु आने पर मुझमें फिर जान आती है और सब राहत की साँस लेते है |

मेरा सफ़र बहुत लम्बा है, परन्तु मेरे सामने मेरा लक्ष्य होता है| वह लक्ष्य है –

समुद्र में मिल जाना | जब मैं धीमी गति से समुद्र की ओर बढ़ती हूँ, तो मेरा

मन उल्लास से भर जाता है, क्योंकि समुद्र हाथ में फेन की माला लिये मेरा

स्वागत करने के लिये खड़ा होता है| समुद्र में मिलकर मेरा अपना रूप समाप्त

हो जाता है और मैं समुद्र्मयी हो गयी हूँ|

मुझे तब दुःख होता है, मनुष्य मुझमें गन्दा-विषैला पानी छोड़ता है, परन्तु मैं तो

प्रकृति की बेटी हूँ, मैं तो सदा पवित्र और स्वच्छ रहूंगी| मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा |

हे मनुष्य ! नुकसान तो तुम्हारा ही है | एक दिन आएगा कि तुम स्वच्छ और

शुद्ध जल के लिये तरस जाओगे | इसीलिए प्रण करो कि मुझे प्रदूषित नहीं करोगे |

मैंने तो संसार के कल्याण का संकल्प लिया है और उसे मैं पूरा करुँगी |

 

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