वह कहता था वह सुनती थी अमृता प्रीतम
Amrita Pritam Hindi Poetry

वह कहता था वह सुनती थी अमृता प्रीतम Amrita Pritam Hindi Poetry
वह कहता था, वह सुनती थी,
जारी था एक खेल
कहने-सुनने का।
खेल में थी दो पर्चियाँ।
एक में लिखा था *‘कहो’*,
एक में लिखा था *‘सुनो’*।
अब यह नियति थी
या महज़ संयोग?
उसके हाथ लगती रही वही पर्ची
जिस पर लिखा था *‘सुनो’*।
वह सुनती रही।
उसने सुने आदेश।
उसने सुने उपदेश।
बन्दिशें उसके लिए थीं।
उसके लिए थीं वर्जनाएँ।
वह जानती थी,
‘कहना-सुनना’
नहीं हैं केवल क्रियाएं।
राजा ने कहा, ‘ज़हर पियो’
*वह मीरा हो गई।
ऋषि ने कहा, ‘पत्थर बनो’
*वह अहिल्या हो गई।
प्रभु ने कहा, ‘निकल जाओ’
*वह सीता हो गई।
चिता से निकली चीख,
किन्हीं कानों ने नहीं सुनी।
*वह सती हो गई।
घुटती रही उसकी फरियाद,
अटके रहे शब्द,
सिले रहे होंठ,
रुन्धा रहा गला।
उसके हाथ *कभी नहीं लगी वह पर्ची,*
जिस पर लिखा था, *‘कहो’*
Amrita Pritam Hindi Poetry
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