सम्राट अशोक का इतिहास ।। Samrat Ashok Biography in Hindi

सम्राट अशोक का इतिहास ।। Samrat Ashok Biography in Hindi ।। सम्राट अशोक की जीवनी

सम्राट अशोक का इतिहास ।। Samrat Ashok Biography in Hindi

सम्राट अशोक का इतिहास ।। Samrat Ashok Biography in Hindi

1: सम्राट अशोक का प्रारम्भिक जीवन

सम्राट अशोक जिनका नाम आज भी हम फक्र से याद करते हैं। उनका पूरा नाम देवानांप्रिया अशोक मोर्या था।सम्राट अशोक भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट थे।सम्राट अशोक को चक्रवर्ती सम्राट अशोक भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है- सम्राटों का सम्राट यह स्थान हमारे भारत में केवल सम्राट अशोक को दिया गया है।

सम्राट अशोक के पिता का नाम बिंदुसार तथा उनकी माता का नाम  सुभाद्रंगी था। बचपन से ही वह सैन्य गतिविधियों में प्रवीण थे। अशोक चिन्ह जो कि भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है, अशोक काल में उकेरा गया प्रतीकात्मक चिन्ह है।

सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व हुआ। उनका जन्म पाटलिपुत्र, पटना में हुआ।वे मोर्य साम्राज्य के तीसरे शासक थे। अशोक समुद्रगुप्त मोर्य के पौत्र थे।

आचार्य चाणक्य ने उन्हें वे सभी गुण सिखाए  जो एक कुशल सम्राट में होने चाहिए।

सम्राट के राज्य के समय पर २३ विश्विद्यालयों की स्थापना हुई थी। जिसमें प्रमुख विश्वविद्यालय तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और कंधार थे। विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने के लिए इन्हीं विश्विध्यालयों में दाख़िला लेते थे। ये सभी विश्वविद्यालय उस समय के सबसे उत्कृष्ट विश्वविध्यालय थे।

 

सम्राट अशोक का साम्राज्य विस्तार और शासनकाल

सम्राट अशोक ने २६९ ईसा पूर्व से २३२ ईसा पूर्व तक शासन किया

सम्राट अशोक का साम्राज्य उत्तर में हिंदकुश से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफगनिस्तान ईरान तक पहुँच गया। उनका साम्राज्य आज का भारत, पाकिस्तान, अफगनिस्तान, नेपाल बांग्लादेश, भूटान म्यांमार के अधिकांश भूभाग पर था।

सम्राट अशोक का साम्राज्य उस सदी से लेकर आज तक का सबसे विशाल साम्राज्य था। विश्व के जितने भी महान शक्तिशाली सम्राट थे उन्मे सम्राट अशोक शीर्ष पर थे।

सम्राट अशोक की कलिंग  की लड़ाई

लगभग 261 ईसा पूर्व कलिंग की लड़ाई हुई थी। सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष में कलिंग पर आक्रमण किया था। 269 इस पूर्व आंतरिक अशांति निपटने के बाद उनका विधिवत राज्यभिषेक हुआ था।

तेरहवें शिलालेख से कलिंग युद्ध की जो जानकारी मिलती है, उसके अनुसार कलिंग युद्ध में एक लाख पचास हज़ार व्यक्ति बंदी बनाकर निर्वासित कर दिए गए और एक लाख लोगों की हत्या कर दी गयी।

अशोक ने यह भारी नरसंहार अपनी आँखों से देखा।वे यह नरसंहार देखकर द्रवित हो गये और उन्होंने शांति समाजिक प्रगति का रास्ता अपना लिया

अशोका के बारे में  आउटलाइन ऑफ हिस्ट्री किताब में लिखा है- “इतिहास में अशोका को हज़ारों नामों से जाना जाता है, जगह जगह पर उनकी वीरता के क़िस्से हैं, उनकी गाथा पूरे इतिहास में प्रचलित है, वे एक सर्वप्रिय, न्यायप्रिय दयालु और शक्तिशाली सम्राट थे।

कलिंग का युद्ध अशोका के जीवन का आख़िरी युद्ध था।इस युद्ध के बाद उनका जीवन पूर्णरूप से बदल गया।

 

बोद्ध धर्म को अपनाया

कलिंग के युद्ध में लाखों लोगों को मरते देख सम्राट अशोक के ह्रदय में परिवर्तन हो गया। उनका ह्रदय दया और करुणा से सरबोर हो गया। उन्होंने प्रतिज्ञा की, कि वह युद्ध क्रियाओं को हमेशा के लिए बंद कर देंगे।  यहाँ से आध्यात्मिक युग की शुरुआत हुई। उन्होंने बोद्ध धर्म को अपना लिया।

वैसे भी सम्राट अशोक का चरित्र मानवतावादी था। वे रात दिन जनता की भलाई के लिए काम करते थे। उन्होंने अपने सभी कर्मचारियों को हिदायत दी हुई थी कि उन्हें उनके विशाल साम्राज्य में होने वाली हर घटना के बारे में पता होना चाहिए।

साथ ही साथ धर्म के प्रति उनकी गहरी आस्था थी, वे एक हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करते थे।

उन्होंने न सिर्फ़ बोद्ध धर्म को स्वीकार किया बल्कि उसके उपदेशों को पूर्णतया अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया।उन्होंने शिकार करना छोड़ दिया।उन्होंने ग़रीबों को खुलकर दान देना आरम्भ कर दिया। उन्होंने अपनी प्रजा के लिए चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया।

उन्होंने बोद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया तथा बोद्ध धर्म के धर्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफगनिस्तान, सीरिया, मिश्र तथा यूनान भेजा।उन्हें अपने पुत्र एवं पुत्री को भी बोद्ध के प्रचार प्रसार में लगाया।उनके पुत्र महेंद्र को बोद्ध धर्म के प्रचार में सबसे अधिक सफलता मिली।

महेंद्र ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बोद्ध धर्म की शिक्षा दी। उन्होंने महेंद्र से दीक्षा ली और बोद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया।

 

सम्राट अशोक के अभिलेख

सम्राट अशोक के कुल 33 अभिलेख प्राप्त हुए।जिन्हें उन्होंने स्तंभों गुफ़ाओं और चट्टानों की दीवारों पर खुदवाया।ये सब आज के बांग्लादेश, भारत, अफगनिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह जगह पर मिलते हैं। ये अभिलेख बोद्ध धर्म के सबसे प्राचीन प्रमाणों में माने जाते हैं।

इन अभिलेखों के अनुसार सम्राट अशोक ने बोद्ध धर्म को भूमध्य सागर के क्षेत्र तक फेलाने का प्रयास किया।इन अभिलेखों के अनुसार सम्राट अशोक मिस्र और यूनान की राजनैतिक गतिविधियों से भी परिचित थे।

इन अभिलखों को पढ़कर पता चलता है इनमें सिर्फ़ बोद्ध धर्म का प्रचार नहीं है बल्कि इन अभिलेखों में मनुष्य को आदर्श जीवन जीने की कला पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है।

सभी पूर्वी क्षेत्रों में ये अभिलेख प्राचीन मगधी भाषा में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों में ये लेख जिस भाषा में लिखे गए वह भाषा संस्कृत से मिलती जुलती है।

 

सम्राट अशोक का निधन

सम्राट अशोक का लगभग 236 ईसापूर्व निधन हो गया। उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया उनकी कई सारी पत्नियाँ और संताने थीं।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद लगभग 50 वर्षों तक मौर्य राजवंश का शासन चला।

पटना के कुमहरार क्षेत्र में अशोकक़ालीन अवशेष मिले हैं। लुम्बनी में भी अशोक स्तम्भ देखा जा सकता है।

 

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