रहीमदास के 10 प्रेरणादायक दोहे Raheemdaas ke dohe

रहीमदास के 10 प्रेरणादायक दोहे

Raheemdaas ke dohe

Raheemdaas ke dohe

Raheemdaas ke dohe

१ दोहा :रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय

अर्थ : रहीमदासजी  कहते हैं कि हमें अपने मन की व्यथा मन में ही रखना चाहिए किसी को सुनाने का कोई फायदा नहीं। सुनकर लोग सिर्फ इठला सकते है दुःख को बांटने वाला कोई नहीं है।

 

२ दोहा : रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय

अर्थ : रहीमदास जी कहते हैं  प्रेम के जो नाते होते है उन्हें थोडा वक़्त देना चाहिए, एक झटके में तोड़ देना उचित नहीं है क्यों कि अगर प्रेम का धागा टूट गया तो उसे जोड़ना मुश्किल होता है और अगर जुड़ भी गया तो उसमे गाँठ पड़ जाती है।

 

३ दोहा : जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह

अर्थ : रहीमदास जी  कहते हैं कि जैसी भी स्थिति हो सहन  करना चाहिए सुख और दुःख तो आते जाते रहते हैं ना सुख स्थिर रहता है ना दुख  धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है. अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए।

 

 

४ : दोहा : जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं

अर्थ : रहीमदासजी  कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से वह छोटा नहीं हो जाता,  जिसप्रकार गिरधर कृष्ण को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा कम नहीं हो जाती।

 

५ : दोहा : रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ

अर्थ : रहीमदासजी  कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।

 

६ : दोहा : रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय

अर्थ : रहीमदासजी  कहते हैं कि जो  विपत्ति कुछ समय के लिए आती है वह अच्छी होती है क्यों कि विपत्ति के समय ही पता चलता है कौन हमारा हितैषी है  और कौन नहीं।

 

७ : दोहा : समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात

अर्थ : रहीमदास जी  कहते हैं कि  जिसप्रकार उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगते हैं। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है.उसी प्रकार  हमेशा  किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।

 

 

८ दोहा : वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग

अर्थ : रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है. जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है

 

९ दोहा :  रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय
अर्थ – जब मुश्किल परिस्थिति आती है, तो व्यक्ति की अपनी कमाई गई दौलत या सम्पत्ति हीं उसकी सबसे बड़ी मददगार होती है। उस मुश्किल समय में व्यक्ति की सहायता कोई नहीं करता है। ठीक उसी तरह जैसे किसी तालाब का पूरा पानी सूख जाने पर, सूर्य कमल के फूल को सूखने से नहीं बचा सकता है।

 

10 दोहा :  एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय
अर्थ– एक-एक करके कामों को करने से सारे काम पूरे हो जाते हैं. ठीक उसी तरह जैसे पेड़ की  जड़ को पानी से सींचने से वह फल-फूलों से लद जाता है.

 

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