रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi

झाँसी की रानी का इतिहास

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi

लक्ष्मीबाई का जन्म 19  नवम्बर 1828 को वाराणसी जिले के भदैनी नामक जगह पर हुआ।  उनके पिता का नाम मोरोपन्त तांबे था तथा उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई था। मोरोपन्त एक मराठी थे।

माता भागीरथीबाई एक बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। बचपन में लक्ष्मी बाई को सब मनु कहकर बुलाते थे। जब वह चार वर्ष की थी तभी उनकी माता का देहांत हो गया।

घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था, इसलिए उनके पिता को उन्हें अपने साथ पेशवा बाजीराव  दरबार में ले जाना पड़ता था। छोटी सी मनु  दरबार में सभी से मीठी मीठी बातें करती थी। लोग उन्हें प्यार से “छबीली” कहकर बुलाते थे।

उनके पिता ने उन्हें बचपन से ही शष्त्रों की शिक्षा दी थी।

सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। बाद में रानी लक्ष्मी बाई और राजा गंगाधर राव ने एक पुत्र को गोद लिया। जिसका नाम दामोदर राव रखा गया।

सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उनकी  मृत्यु हो गयी। 

ब्रिटिश सरकार ने उनके गोद लिए गए पुत्र दामोदर राव के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर कर दिया।  ब्रिटिश सरकार ने उनके राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति ने जो कर्ज लिया था, उसकी रकम ,रानी की सालाना आय से  से काटने का निर्णय सुनाया।

इस वजह से परेशान होकर रानी  को झाँसी का क़िला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। मगर फिर भी साहसी   रानी लक्ष्मीबा ई ने हिम्मत नहीं हारी और हर  हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने की ठान ली। फिर क्या था, कहते हैं… उम्मीद से आसमान टंगा…

रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी रणनीति बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया, जिसके लिए उन्होंने एक सेना का गठन किया। 1857 में उन्होंने झाँसी को संग्राम का प्रमुख केंद्र बनाया। उन्होंने सेना में महिलाओं को भी भर्ती किया।

1857 में उनके पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजाओं ने झाँसी पर हमला कर दिया। आखिरकार इस संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई को जीत हासिल हुई।

उसके बाद ब्रिटिश सेना ने झाँसी पर हमला कर दिया और शहर को चारों ओर से घेर लिया। उन्होंने झाँसी पर कब्ज़ा कर लिया। रानी लक्ष्मी बाई अपनी सूझ बुझ से अपने पुत्र दामोदर राव के साथ भागने में सफल रहीं।

वहां से भाग कर वह कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली। उन्होंने ग्वालिअर के एक किले पर कब्ज़ा कर लिया।

 

18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गईं।

ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने लक्ष्मी बाई के बारे में एक कथन कहा- “रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी हीं, साथ ही साथ विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी”

रानी लक्ष्मीबाई हमारे भारतीय इतिहास की एक ऐसी बीरंगना थी, जो आज भी भारत की हर नारी को प्रेरित करतीं है। आज भी इतिहास के पन्नों पर अपने नाम की मुहर लगाने वाली रानीलक्ष्मी बाई के  साहस, दृढ निश्चय, आत्मविश्वास की कहानी सारे विश्व में प्रसिद्ध है।

आज अगर भारत की हर नारी लक्ष्मीबाई की तरह आत्मविश्वासी हो जाए। तो देश की उन्नति में चार चाँद लग जायेंगे

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें 

 

 

चंद पंक्तियाँ जो  सुभद्रा कुमारी चौहान ने रानी लक्ष्मी बाई के ऊपर लिखी हैं…

Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi Poem

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।                                    

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

                                                                                                                                                   Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi Poem

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।    
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।

महाराष्ट-कुल-देवी भी उसकी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
वीर बुंदेलों सी विरदावली सी वह आई झाँसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया,शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 

                                                                                                                                             Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi Poem 

छिनी राजधानी दिल्ली की,लिया लखनऊ बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

                                                                                                                                                  Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi Poem

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्ध असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अब जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया,यह था संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,                                   Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
तेरा यह बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

 

 

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Comments

  1. मनमोहन सिंह त्यागी says:

    दुर्गा माँ की अवतार महारानी लक्षमीबाई के चरणों मे नमन
    जन्म वर्ष1935 और1928 अलग अलग क्यों दिखाये है

  2. BAHUT HI ACHHA

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