सुभाष चन्द्र बोस का देशप्रेम Motivational Hindi story on Subhash chandra bose

सुभाष चन्द्र बोस का देशप्रेम

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का देशप्रेम Motivational Hindi story on Subhash chandra bose

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का देशप्रेम Motivational Hindi story on Subhash chandra bose

Motivational Hindi story on Subhash chandra bose

बात उन दिनों की है,  जब सुभाष चन्द्र बोस जो कि नेता जी के नाम प्रसिद्ध थे। उनका जन्म एक संपन्न बंगाली परिवार हुआ। उनके पिता जानकी नाथ बोस शहर के मशहूर वकील थे।भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया और उन्होंने सिविल सर्विस में चौथा स्थान प्राप्त किया।

भारत में बढती राजनैतिक गतिविधियों के कारण उन्होंने सिविल सर्विस से त्याग पत्र दे दिया। बोस के द्वारा आईसीएस का पद ठुकराए जाने के कारण उनके पिता बहुत दुखी हुए और दुःख के कारण बीमार रहने लगे।

जब उनके बड़े भाई शरद चन्द्र ने उनकी ये हालत देखी, तो उन्होंने सुभाष को पत्र लिखा। उसमे सूचित किया-पिताजी तुम्हारे फैसले से बहुत दुखी हैं। आवेश में आकर तुमने यह फैसला करने से पहले पिताजी से सलाह क्यों नहीं की।

पत्र पढ़कर सुभाष को बहुत दुःख हुआ वह असमंजस में पड़ गए। उन्होंने अपने बड़े भाई शरद चन्द्र बोस को पत्र लिखा। पिताजी की नाराज़गी जायज़ है मगर इंग्लैंड के राजा के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेना मेरे लिए संभव  नहीं था। मैं खुद को देश की सेवा में समर्पित कर देना चाहता हूँ।

मैं हर तरह की मुश्किलों के लिए तैयार हूँ, चाहे वह निर्धनता, अभाव, माता पिता की अप्रसन्नता हो या कुछ और मैं सब सहने के लिए तैयार हूँ।

इसके जबाब मैं शरद चन्द्र ने सुभाष को पत्र लिखा ; पिताजी रात-रात भर सोते नहीं हैं इस चिंता में कि भारत आते ही तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जायेगा. सरकार तुम्हारी गतिविधियों पर कार्यवाही जरुर करेगी अब तुम्हे स्वतंत्र नहीं रहने देगी।

यह पत्र सुभाष के मित्र दिलीप राय ने भी पढ़ा, वे सुभाष से बोले कि मित्र तुम अब भी चाहो तो अपना त्याग पत्र वापस ले सकते हो। ये सुनकर सुभाष गुस्से में आ गये और बोले-

“मैंने ये निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया है, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो।”

तब दिलीप बोले-

“मैं तो सिर्फ ये कह रहा था कि तुम्हारे पिता बीमार हैं।”

मित्र की बात बीच में ही काट कर सुभाष बोले-

“मैं जानता हूँ, इस बात का मुझे भी खेद है, लेकिन अगर अपने परिवार की प्रसन्नता के आधार पर हम अपने आदर्श निर्धारित करें, तो क्या यह ठीक होगा।”

यह बात सुनकर राय दंग रह गए। उनके मुँह से अनायास ही निकल गया-सुभाष तुम धन्य हो और वो माता- पिता भी जिन्होंने तुम जैसे पुत्र को जन्म दिया जो देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार है।

 

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