बृद्धावस्था में जीवन जीने की कला Short Hindi story of Socrates

बृद्धावस्था में जीवन जीने की कला

Short Hindi story of Socrates

बृद्धावस्था में जीवन जीने की कला Short Hindi story of Socrates

बृद्धावस्था में जीवन जीने की कला Short Hindi story of Socrates

बहुत पुरानी बात है. एक प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात थे। एक दिन वह एक शहर में गये, वहां उनकी मुलाक़ात एक वुजुर्ग से हुई। सुकरात ने उनसे कुछ देर बात की वह उन वुजुर्ग से बहुत प्रभावित हुए।  वुजुर्ग ने उनसे घर आने का आग्रह किया। सुकरात उनके घर गए वहां उन्होंने देखा-

उनका भरा पूरा घर था घर में बेटे थे बहुएं थी। उनके बच्चे थे. सभी बहुत खुश नज़र आ रहे थे। सुकरात ये देखकर बहुत खुश हुये।

सुकरात ने वुजुर्ग से कहा-

“आपके घर में सुख समृधि का वास है। वैसे आप करते क्या हैं ? “

वुजुर्ग बोले- “अब मुझे कुछ नहीं करना पड़ता। ईश्वर की कृपा से हमारा अच्छा कारोबार है। सारी जिम्मेदारियां मैंने बेटों को सौप दी हैं।घर बहुयें संभालती हैं।

सुकरात बोले-

“आप इस बुढ़ापे में भी इतने सुखी हैं। आपके सुखी जीवन का रहस्य क्या है ?”

वुजुर्ग बोले-  मैंने अपने जीवन में सिर्फ यही सीखा है बदलते समय के साथ हमें भी बदलना चाहिए। बुढ़ापा जीवन का सबसे कठिन पहलू होता है. जीवन के इस मोड़ पर मैंने बस यही फलसफा अपनाया है कि दूसरों से ज्यादा अपेक्षाएं मत पालो जो मिले उसमे संतुष्ट रहो। मैं और मेरी पत्नी संतुष्ट हैं। सारी जिम्मेदारियां हमने अपने बेटे और बहुओं को सौप दी हैं।

अब घर के सारे निर्णय वही लेते हैं। जो मुझसे करने को कहते हैं मैं कर देता हूँ। जो भोजन घर में बनता है, हम खा लेते है. किसी भी प्रकार का दबाब हमने घर में नहीं बनाया है…

अगर हमने उन्हें पाल पोस के बड़ा किया है, तो सारी जिन्दगी उन्हें मेरी बात माननी चाहिए, ऐसा मैं नहीं मानता. मेरा जीवन निकल गया, अब मैं चाहता हूँ… वो लोग अपना जीवन अपने तरीके से जियें। हम अपने पौत्र-पौत्रियों के साथ हँसते  खेलते  रहते हैं, और मस्त रहते हैं।

जब कभी वह मेरे पास राय-मशवरे के लिए आते हैं। तो मैं अपने जीवन के सारे अनुभवों को उनके सामने रख देता हूँ। उन्हें सही सलाह देता हूँ लेकिन बिलकुल भी मेरी सलाह मानने के लिए उन्हें बाध्य नहीं करता। अगर वो कोई भूल करते हैं, तो उसके दुष्परिणामों से उन्हें आगाह कर देता हूँ।

सलाह देना मेरा काम है। अब उस सलाह को वो कितना मानते हैं ये सोचना मेरा काम नहीं है।

कभी-कभी वो मेरी सलाह मानते हैं कभी नहीं मानते…मगर मैं चुप रहता हूँ। मेरी सलाह मानने या न मानने का अधिकार भी मैंने उन्हें ही दे दिया है।

अगर दोबारा वह किसी समस्या का समाधान ढूढ़ते हुए वह मेरे पास आते हैं। मैं अपनी राय उन्हें दे देता हूँ।

मेरा मानना है। अगर वो कुछ गलत भी करेंगे तब भी उन्हें एक अनुभव मिलेगा। अगर वो कभी गिरेंगे नहीं तो संभालना कैसे सीखेंगे।

वुजुर्ग की बातें सुनकर सुकरात बहुत प्रसन्न हुये और बोले-

इस आयु में जीवन कैसे जिया जाता है। ये हर वुजुर्ग को आपसे सीखना चाहिए।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है…

निश्चिंत रहने के लिए के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है माया और मोह का त्याग करना।

 

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Comments

  1. achha likhte ho aap

  2. बुढ़ापे पर लिखी यह लेख हम युवाओं को भी प्रेरित करता है,
    कर्म करो फल की फिकर नही।

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