कल्पना का जाल हिंदी कहानी । Motivational Hindi Story on imagination

कल्पना का जाल हिंदी कहानी ।

Motivational Hindi Story on imagination

कल्पना का जाल हिंदी कहानी । Motivational Hindi Story on imagination

कल्पना का जाल हिंदी कहानी । Motivational Hindi Story on imagination

 

कल्पना के आकाश में उड़ना किसे नहीं भाता, या यूँ कहें कल्पनाएँ हमें जीवन से बाँधकर रखती हैं ।

बचपन कल्पनाओं का एक शहर होता है जहाँ एक बच्चा स्वछ्न्द अपने जीवन को जीता है ।

 

ज़रूरी नहीं कि वो बच्चा जो कुछ भी कर रहा है, उसके पीछे कोई वजह हो । चाहे वह कुछ अच्छा करे या कुछ

बुरा करे । उसे पता ही नहीं होता कि ये काम मैं अच्छा कर रहा हूँ ये काम बुरा ।

वो तो हम हैं, जो उसे एहसास दिलाते रहते हैं कि ये काम अच्छा है ये काम बुरा ।

 

बचपन में बच्चे जो भी करते हैं वो या तो अपनी मर्ज़ी से करते हैं या आसपास के लोगों से प्रभावित होकर करते हैं ।

जैसे जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें अपने अंदर की आवाज़ कम सुनाई देने लगती है और बाहरी वातावरण से प्रभावित होकर

कभी वह अपनो से बड़ों जैसा बनना चाहते हैं , या कभी परिवार में या आसपड़ोस किसी से प्रभावित होकर वैसा बनने

का प्रयास करने लगते हैं ।

 

जैसे जैसे वे बड़े होने लगते हैं ख़ुद को खोने लगते हैं । दुनिया की नज़र से ख़ुद को देखने लगते हैं और फिर एक दिन न वे ख़ुद के जैसे

बन पाते हैं, न दुनिया की उम्मीदों पे खरे उतर पाते हैं ।

 

कल्पना का जाल हिंदी कहानी ।

Motivational Hindi Story on imagination

 

आज मैं आपको निकिता से मिलवाती हूँ , जो एक गुमसम सी सीधी सादी लड़की जो कल्पना के आकाश में हर घड़ी उड़ती रहती है ।

जब किसी से बात करती तो बहुत बात करती या फिर चुप ही रहती । खेलना उसे पसंद था लेकिन, हर वक़्त खेलते रहना उसे

पसंद नहीं था ।

 

पढ़ाई में भी अच्छी थी अपनी क्लास में दूसरे नम्बर पर आती थी और पहले नम्बर पर आना भी नहीं चाहती थी क्योंकि पहले नम्बर पर उसकी

एक दोस्त आती थी । वह उससे आगे नहीं आना चाहती थी इसलिए ज़्यादा पढ़ाई भी नहीं करती थी,  कोई प्रयास भी नहीं करती थी ।

मगर कहीं न कहीं उसको ख़ुद को साबित करने की चाह थी ।

 

Class Test  में बहुत पढ़ाई करती थी इतनी कि पूरे में पूरे नम्बर आ जाएँ और हमेशा उसके टेस्ट में Full Marks ही आते थे ।

शायद वह ख़ुद को भी  Proof करती थी कि वह प्रथम आने में सक्षम है । अनजाने में ही वो ये सब करती थी बाद में बैठकर ख़ुद

ही सोचती थी कि वो Test में इतनी पढ़ाई क्यूँ करती थी ।

 

लेकिन, जैसा कि  मैंने कहा कि बचपन में हमें पता नहीं होता कि हम क्या कर रहे हैं

बाहरी दुनिया से प्रभावित निकीता बड़ी होने लगी और उसकी कल्पना की उड़ान भी 

बड़ी होने लगी ।

 

वो नहीं जानती थी कि पढ़ाई में उसका कुछ विशेष लगाव क्यूँ है । अंदर ही अंदर 

कुछ करने की चाह उसमें हमेशा से थी । कल्पनाओं में पता नहीं कितनी दफ़ा वह नौकरी

करती और अपनी और अपने आसपास के हर जरूरतमंद की हर ज़रूरत को पूरा करती ।

 

मगर  कल्पना सिर्फ़ कल्पना थी जो कि वक़्त के साथ बढ़ती जा रही थी । धीरे धीरे वह ग्रैजूएट हो गयी ।

घर में उसकी शादी की बातें चलने लगी । वो भी मन ही मन सपने सजाने लगी सोचने लगी पता नहीं 

किसके साथ उसे सारी ज़िंदगी गुज़ारनी है।

 

अंदर ही अंदर दिल चाहने लगा कि कोई हो जो उसे समझे उसकी सारी अच्छी बुरी बातें सुने।कोई हो जिससे वह 

दिल खोल के बातें कर सके । कब जीवन में कुछ बनने ,आगे बढ़ने का सपना शादी के सपने में बदल गया ,

उसे पता ही नहीं चला ।

 

या यूँ कहें जीवन में कुछ बनने के  सपने से ज़्यादा अच्छा शादी का सपना लगने लगा ।

माँ की सारी चीज़ें जैसे उनका घूँघट डालना , घर सम्भालना , खाना बनाना , माथे पर बिंदिया लगाना सब निकिता को 

प्रफुल्लित करने लगा ।

 

माँ की परेशनियाँ उसे दिखती पर उसे लगता कि वो सब सम्भाल लेगी । सास बहु के सीरीयल उसे अच्छे लगने लगे ।

जैसा कि फ़िल्मों में रोमांस दिखाया जाता है । वह बहुत अच्छा लगने लगा। वे प्यार मोहब्बत के गीत , सब कुछ निकिता को मन 

ही मन लुभाने लगे । उसने सोचा पहले वह शादी करेगी उसके बाद नौकरी करेगी ।

 

ज़्यादा ऊँची उसकी ख़्वाईशें नहीं थीं । उसे सिर्फ़ एक ऐसा इंसान चाहिए था जो उसके लिए भी अच्छा हो और उसके 

आसपास जितने भी लोग हैं , उनके साथ अच्छा व्यवहार करे विशेषतौर पर उसके माता पिता ।

 

फिर क्या था , रिश्ते आने लगे , घर में पूरी छूट दी गई थी । कि अगर उसे लड़का पसंद नहीं होगा तो वह शादी के न कर सकती 

है ।

निकिता की कल्पनाएँ बढ़ती गईं , कल्पनाएँ उसे इस क़दर घेर लेतीं कि सच दिखता ही नहीं कोई समझाने वाला भी नहीं था।

हर कोई यही समझाता कि बीस की उम्र के बाद लड़की को शादी करनी है । यही बातें होती रहती । कई जगह बात चली घर

वालों ने काफ़ी सारे लड़के देखने  के बाद एक लड़का पसंद किया । जो देखने में भी ठीक था और नौकरी भी ठीक ठाक करता 

था ।

 

निकिता पढ़ी लिखी थी उसे लड़के से मिलवाया गया । निकिता मानो पहले से बिना सोचे समझे तैयार ही थी । बस उसकी एक दो बातें 

लड़के में हों । ज़्यादा रुपए पैसे का उसे लालच नहीं था । साधारण से घर में ही जाना चाहती थी।

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लड़के ने मिलते ही उसे बता दिया कि शादी के बाद उसे नौकरी करने से कोई ऐतराज़ नहीं ,

वह खुले विचारों का है । लड़का  काफ़ी व्याहारिक था और 

सादा भी।

 

फिर क्या था निकिता ने हाँ कर दी । उसके बाद उसकी लड़के से ज़्यादा बात नहीं हुयी ।

घर वालों से उसे लड़के का नाम पता चल गया ।

“कबीर ” 

 

अब क्या वह कबीर के सपने देखने लगी । कभी कभी फ़ोन पर बात हो जाती ,

लेकिन उसे कबीर के फ़ोन का कोई ज़्यादा इंतज़ार नहीं रहता ।

 

वह अपनी कल्पना में इतनी खोई हुई थी कि वह कुछ समझ नहीं पायी । 

या यूँ कहें कि वह कुछ जानना चाहती ही नहीं थी। उसने तो मन बना लिया था

किसी से तो शादी करनी ही है तो कबीर से ही क्यों नहीं ।

वैसे  कबीर उसे अच्छा भी लगता था और समझदार भी ।

 

आख़िर वह दिन आ ही गया जब उसकी डोली उठ गई । वह  नए लोगों के बीच पहुँच गई ।

उसे  साज शृंगार, तारीफ़े बहुत अच्छी लग रहीं थी ।

नई बहु का भरपूर स्वागत हुआ । जैसे कि हमारे यहाँ परम्परा है कि पहली विदा में बहू से कुछ काम नहीं  करवाते ।

 

निकिता जब दूसरी बार ससुराल पहुँची तो अचानक से उसे एहसास हुआ

कि उसके ऊपर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई । सब कुछ बदल चुका था 

अब सुबह की चाय देने वाला कोई नहीं था ।

 

उसे लगा कुछ दिनों की बात है,  कुछ दिनों में वह दिल्ली में जहाँ कबीर नौकरी करता है वहाँ रहेगी ।

और वहीं अपने लिए भी कोई  नौकरी देख लेगी ।

 

अब निकिता को एहसास हो आया था कि वह कल्पना की दुनिया से सच की दुनिया में क़दम राख चुकी है ,

और उसकी कल्पनाओं के चिथड़े उड़ना शुरू 

हो गए हैं ।

कबीर भी उसकी जयादत्तर बातें अनसुनी कर देता , लेकिन वह ख़ुद को अच्छी

पत्नी बहू सिद्ध करने के लिए वह सबकुछ करती जो कबीर के 

परिवार में होता ।

 

कई बार वह कबीर से नाराज़ हो जाती कबीर उसे बहुत मनाता , लेकिन करता वो सिर्फ़ अपने मन की ।

कबीर की नज़रों में पत्नी का मतलब सिर्फ़  अच्छा खाना देने वाली ,

समाज में उसकी इज़्ज़त बढ़ाने वाली और उसकी सारी ज़रूरतों को 

पूरा करने वाली महिला थी ।

 

जिसके बदले में वह घर के प्रति अपनी सारी ज़िम्मेदारी निभाता था ।

बड़ी बड़ी बातों से उसका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था ।

और निकिता की कल्पना की दुनिया से तो एकदम नहीं ।

 

धीरे धीरे निकिता की कल्पना का जाल फटकर टुकड़े टुकड़े हो गया । 

एक दिन ऐसा आया जब निकिता ने ख़ुद उस जाल 

को जला दिया ।

अब निकिता काफ़ी सुकून में थी और सच को साफ़ साफ़ देख पा रही थी , उसने सोचा अगर उसने ये कल्पना की दुनिया न 

बनाई होती सिर्फ़ अपने आसपास का सच ही देख लिया होता । तो वह अपनी पढ़ाई का उपयोग करके किसी अच्छे पद पर 

होती ।

भावनाओं में बहकर जो जीवन शेष रह गया था वह ऐसा था जैसे कोई जीने की कला ।

निकिता अब अपने बच्चों और कबीर के साथ ख़ुश है लेकिन एक अफ़सोस के साथ कि काश उसने वह कल्पना का जाल न

बुना होता ।

 

@प्रियंका पाठक 

 

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