आनंदीबाई जोशी का दृढ़ संकल्प । Hindi story on early marriage । Aanadi Bai joshi Prerak Prasang

आनंदीबाई जोशी का दृढ़ संकल्प । Hindi story on early marriage । Aanadi Bai joshi Prerak Prasang

आनंदीबाई जोशी का दृढ़ संकल्प । Hindi story on early marriage । Aanadi Bai joshi Prerak Prasang

आनंदीबाई जोशी का दृढ़ संकल्प । Hindi story on early marriage । Aanadi Bai joshi Prerak Prasang

लोकहित का संकल्प

 महाराष्ट्र में एक रूढ़िग्रस्त ब्राह्मण परिवार में उनके घर की एक कन्या थी।

परिवार के लोगों ने मिलकर उस कन्या का विवाह मात्र नौ वर्ष की उम्र में ही कर दिया। जब

वह कन्या 14 वर्ष की हुई तो उस उम्र में उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

 

जन्म के दशवे दिन शिशु की मौत हो गयी|।कारण था माँ की उम्र कम होना, जिसके कारण शिशु

को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाया और न ही समय पर चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं मिल पायी।

माँ , जो कि  स्वयं भी एक किशोरी थी वह यह  सहन नहीं कर पा रही थी।

 

इसके बाद वह वह जब भी कोई ऐसी घटना उसके सामने होती हुयी देखती तो उस इन सब

घटनाओं का गहरा दुःख महसूस करती, कि वह यह सब देखते हुए भी  कुछ नहीं कर पा रही है।

फिर एक दिन उसने एक दृढसंकल्प लिया।

आनंदीबाई जोशी का दृढ़ संकल्प

 

वह कुछ ऐसा करेगी कि इन सब परेशानियों से परेशान लोगों की परेशानी दूर हो सके। तब उसने 

स्वयं एक डाक्टर बनने की ठान ली। और उसने सोचा वह नन्हे शिशुओं और दूसरे रोगियों को अकाल मौतों से

बचाने का प्रयत्न करेगी।

 

उसने अपने इस फैसले के बारे में अपने पति को बता दिया|।अपनी पत्नि की इक्षा को सम्मान देते हुये

उसने भी अपनी पत्नि की इक्षा को पूरा करने में पूरा सहयोग किया।पति के सहयोग और अपनी इच्छा

शक्ति के बल पर अपनी सारी बाधाये पार करती गयी ।

 

आखिरकार मेडिकल  की पढाई करने अमेरिका चली गयी । वहां प्रतिकूल मौसम के कारण पहले से ही

अस्वस्थ्य चल रही इस युवती को क्षयरोग ने घेर लिया काफी परेशानियों का सामना करती हुयी हुई उसने 

हिम्मत नहीं हारी व मेडिकल  की पढ़ाई  पूरी करने के बाद ही स्वदेश लौटी।

 

लौटने के बाद देश में उनका भव्य स्वागत किया गया। आते ही उसने  चिकित्सक के रूप में काम करना

प्रारंभ कर दिया । हालाँकि वे ज्यादा दिन तो जीवित नहीं रहीं एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी । वे युवती

और कोई नहीं आनन्दीबाई जोशी थी। पुणे शहर में जन्‍मी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी।

 

लोकहित में लिया गया उनका दृढ़संकल्प व अत्यंत प्रतिकूल पारिस्थितयों में उसे पूरा करने का साहस

आज भी हम सभी के लिये प्रेरणा का स्त्रोत है ।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी काम को करने के लिए अपने मन में दृढसंकल्प

कर लेना चाहिए और अपने काम को करने के लिए पूरी ताकत लगा देनी चाहिए|।हार नहीं माननी चाहिये

तब आपकी जीत पक्की है।

 

 

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