बात जब अपने बारे में लिखने की आती है Hindi Poetry on writting

बात जब अपने बारे में लिखने की आती है Hindi Poetry on writting

बात जब अपने बारे में लिखने की आती है Hindi Poetry on writting

 

बात जब आप अपने बारे में लिखने की आती है

तो कलम रुक जाती है तो कलम रुक सी  जाती है

तराशा है हमने शब्दों को कुछ इस तरह

की हर एक कविता में जीने का सलीका सिखाती है

कैसे करूं मैं बयां हकीकत जहान की

दिल कही है और जान कहीं जाती है

तमन्नाओं को अल्फाजों में पिरोना नहीं आसान

कई बार कहते-कहते सांस रुक सी जाती है

जब से रूबरू हुआ है दिल धड़कन से

दिल में एक टीस सी उठ जाती है

मुद्दत से संभाल कर रखा था जिसे

वह ख्यालों की कलम यूं ही रंग लाती है

मेरी कहानियाँ

कल्पना का जाल 

 

 

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तनहाँ सी ज़िंदगी

तुम भी क्या ख़ूब कमाल करते हो 

हमारे देश की महान नारी 

क्य वाक़ई में भारत आज़ाद हो गया है 

ये ख़ामोशी ये रात ये बेदिली का आलम 

कभी कभी अपनी परछाईं से भी डर लगता है 

मैंने चाहा था चलना आसमानों पे 

कविता लिखी नहीं जाती लिख जाती है 

अभी अभी तो उड़ान को पंख लगे हैं मेरी 

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