भीड़ में भीड़ से और तन्हाई में खुद भागते हैं हम हिंदी कविता Hindi Poetry on Give up
भीड़ में भीड़ से और,
तन्हाई में खुद भागते हैं हम
भरी दोपहर हो या आधी रात,
नींद से चौक कर जागते है हम हैं
यकीन नहीं आता इस झूठी सी जिंदगी पर
सच सामने भी आए,
तो उस सच को भी मापते हैं हम
कभी तसल्ली से चुप रहकर,
सब कुछ सह लेना
और कभी आंखों को,
आंसुओं के समंदर से तर कर लेना
इस उथल-पुथल में भी जिंदादिली से,
अपने ही दिल में झांकते है हम
दिल से दुआ करते हैं खुलकर जीने की,
मगर फिर भी… मौत से डरते हैं हम
- और जिंदगी से भागते हैं ।
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सवाल तुम्हारे पास भी हैं
रात और चाँद
न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
कुछ नहीं कहना है कुछ नहीं सुनना है
तनहाँ सी ज़िंदगी
तुम भी क्या ख़ूब कमाल करते हो
हमारे देश की महान नारी
क्य वाक़ई में भारत आज़ाद हो गया है
ये ख़ामोशी ये रात ये बेदिली का आलम
कभी कभी अपनी परछाईं से भी डर लगता है
मैंने चाहा था चलना आसमानों पे
कविता लिखी नहीं जाती लिख जाती है
अभी अभी तो उड़ान को पंख लगे हैं मेरी
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good
The poem is wonderful. I like it. It is perfectly fitting for me.
It is not easy to give up. The person who is giving up I can understand their feelings.
I appreciate the poet (Priyanka Pathak) for writing such a wonderful poem.
Thanks & Regards,
Shivam Singh