शिकायत अपनों से होती है हिंदी कविता ।Hindi Poetry on Complain

Hindi Poetry on Complain

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शिकायत अपनों से होती है

मगर जो अपना ना रहा

उससे शिकायत कैसी




प्यार सिर्फ जिस्म से किया हो जिसने

उससे मोहब्बत की जुर्रत कैसी




प्यार तो क्या इंसानियत भी, 
ना निभा सका जो

उससे मोहब्बत की बंदिश कैसी




खबर हर एक पल की रखना, 
तो अब मुनासिब ना रहा

जिसे जाना है जहां जाए इजाजत कैसी


मेरी कहानियाँ

कल्पना का जाल 

 

 

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वो नौ महीने हिंदी  कविता 

सवाल तुम्हारे  पास भी हैं 

रात और चाँद 

न जाने क्या है इस खामोशी का सबब

कुछ नहीं कहना है कुछ नहीं सुनना है

तनहाँ सी ज़िंदगी

तुम भी क्या ख़ूब कमाल करते हो 

हमारे देश की महान नारी 

क्य वाक़ई में भारत आज़ाद हो गया है 

ये ख़ामोशी ये रात ये बेदिली का आलम 

कभी कभी अपनी परछाईं से भी डर लगता है 

मैंने चाहा था चलना आसमानों पे 

कविता लिखी नहीं जाती लिख जाती है 

अभी अभी तो उड़ान को पंख लगे हैं मेरी 

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