आखिर क्यों नहीं चाहते लोग बेटी Hindi article on daughter

आखिर क्यों नहीं चाहते लोग बेटी

Hindi article on daughter

आखिर क्यों नहीं चाहते लोग बेटी Hindi article on daughter

आखिर क्यों नहीं चाहते लोग बेटी Hindi article on daughter

एक तरफ तो हमारे देश में बेटी को लक्ष्मी का रूप माना गया है। मगर ये सच भी छिपा नहीं है कि आज भी लोग बेटी नहीं चाहते। अगर पहला बच्चा लड़की होती है तो कहीं ना कहीं ये आस होती है कि पहला बच्चा बेटा होता तो अच्छा होता।

कई बार बेटे की आस में लोग बच्चों की Line लगा लेते है, चाहे पालन पोषण करने में समर्थ हों या नहीं। आज भी लोग पुरानी कुरीतियों को छोड़ नहीं पा रहे जैसे कि… बेटा वंश बढ़ाएगा, बेटियां तो पराई होती है।

 

देश की विडम्बना

यह हमारे देश की विडम्बना नहीं तो क्या है कि हमारे देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. क्यों कि बेटियों की स्थिति  से हमारे देश की सरकार भी अनजान नहीं है।
पिछले एक दशक में 1 करोड़ 37 लाख बालिका भ्रूण नष्ट किये गए हैं. ये सिर्फ सरकारी आकड़े हैं, असल आंकड़े तो इससे भी अधिक होंगे। आज भी कई Hospital ये अनैतिक कार्य कर रहे हैं।

 

क्यों बेटी बोझ बन गयी है

दरअसल  बेटी हो या बेटा माता-पिता अपने हर बच्चे से बराबर प्रेम करते हैं। मगर बेटी पैदा होते ही , माता पिता को अनेक चिंतायें घेर लेती हैं; जैसे कि उसकी सुरक्षा की चिंता होने लगती है।अगर अच्छा पढ़ा लिखा दिया और एक अच्छी Job लग भी गयी, तो उनसे कोई उम्मीद नहीं कर सकते क्यों कि वो  दूसरे घर चली जायेंगी।
जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती है, माता-पिता की नींद उड़ जाती है, उसके घर से बाहर निकलते ही उसके घर आने तक वह  चिंतित रहते हैं कि कहीं कोई ऊँच-नीच न हो। अगर किसी की बेटी ने अपनी मर्ज़ी से दूसरी जाति में विवाह कर लिया , तब भी लोग माता-पिता और उनके दिए गए संस्कारों पर ही  उँगलियाँ उठाते हैं।

 

अगर माता पिता के पास पर्याप्त पैसा नहीं है, तो दहेज़ का डर सताने लगता है। पहले पालन पोषण उसके बाद दहेज़ और ये सब करने के बाद भी उन्हें मुक्ति नहीं मिलती। एक पुरानी कहावत है, जिसे नियम बना दिया गया है। लड़की वालों को झुकना पड़ता है।
एक बार बेटी को विदा करने के बाद अपने ही घर उन्हें बुलाने के लिये उन्हें Permission मांगनी पड़ती है।

‘आखिर क्या बेटी पैदा करके माता-पिता ने कोई गुनाह किया है’

Friends… आज भी हमारे देश में नारियों का सम्मान नहीं है, एक तरफ सब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और दूसरी तरफ उन्हें कमजोर बना दिया गया है।
हर नारी तो पी टी ऊषा, मेरी कॉम, इंदिरा गाँधी नहीं बन सकती, तो क्या जो घर में रहती हैं, घर संभालती हैं, उन्हें कभी न्याय नहीं मिलेगा।
आज जरुरत है, बेटी और उसके माता-पिता को मजबूत बनने की। नारी को स्वयं अपने अधिकारों के लिये आगे बढ़ने की।
एक नारी को इस समाज़ में जिस दिन सम्मान मिलने लगेगा और  देश से जिस दिन ये कुरीतियाँ ख़त्म हो जायेंगी, उस दिन हर माता-पिता को  बेटी पैदा  होने पर गर्व होगा।

“आज समाज़ में ऐसे भी लोग हैं जो इन कुरीतियों को नहीं मानते, उनके खिलाफ हैं। मैं उनको धन्यवाद देना चाहूंगी ” 

कई घरों में नारी  को सम्मान मिल रहा है। मगर ऐसे लोग और ऐसे घरों की संख्या बहुत कम है। गांवों में आज भी बेटी और बेटा में फर्क साफ़ देखने को मिलता है।

देश तेज़ी से बदल रहा है, मेरा  प्रयास है कि मैं भी इस बदलाव के लिये कुछ मदद करूँ।

 

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