कभी कभी अपनी परछाई से भी डर लगता है Emotional Hindi Poetry on shadow

कभी कभी अपनी परछाई से भी डर लगता है

Emotional Hindi Poetry shadow

कभी कभी अपनी परछाई से भी डर लगता है Emotional Hindi Poetry on shadow

कभी कभी अपनी परछाई से भी डर लगता है Emotional Hindi Poetry on shadow

कभी कभी अपनी परछाई से भी डर लगता है
मौत से भी ज्यादा जिन्दगी से डर लगता है

सफर में आगे बढ़ तो रहे हैं हम
तन्हाई से भी ज्यादा भीड़ से डर लगता है

हर कदम पे अपने ही करते हैं छलावा
दुश्मनों से भी ज्यादा दोस्त से डर लगता है

तमाम उम्र गुजार दी नेकियों में हमने
नफरत से भी ज्यादा प्यार से डर लगता है

धोखा हर एक इंसान से खाया है इसकदर
वेवफा से भी ज्यादा वफादार से डर लगता है

ये मतलब परस्त लोग और उनकी कहानियाँ
फरेबी से भी ज्यादा जिम्मेदार से डर लगता है

कर दिया है सीना छलनी इन वारदातों ने
अब हैवान से भी ज्यादा इंसान से डर लगता है

 

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Comments

  1. Dheeraj says:

    Hi
    baakamaal asliyaat ha ye jindagi ki
    Great mam

  2. wahh ji waah.. true feelings.
    plz share

  3. महेश says:

    बहुत ही खूब और कमाल का लिखा है , लाजवाब

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