महाराणा प्रताप की जीवनी | Maharana Pratap Biography And History In Hindi

महाराणा प्रताप की जीवनी | Maharana Pratap Biography And History In Hindi

महाराणा प्रताप की जीवनी | Maharana Pratap Biography And History In Hindi

महाराणा प्रताप की जीवनी | Maharana Pratap Biography And History In Hindi

मेवाड़ के शासक राणा सांगा थे उन्होंने बाबर के मैदान में खानबा को युद्ध में टक्कर दी,

पर वह जीत नहीं पाए, वे जब तक जीवित रहे उन्होंने हार नहीं मानी,

उनका निधन सन 1528 को हुआ |

उनकी मृत्यु के बाद बाबर ने अपना अभियान आगे बढ़ाया |

सन (1537 – 1572 ) तक राज गद्दी महाराणा उदय सिंह ने संभाली |

सन 1572 में महाराणा उदय सिंह का भी निधन हो गया

और तब उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने मेवाड़ का राज्य संभाला |

शासक बनाने के बाद उनके ऊपर अपने घर और बाहर दोनों का भर आ गया |

उन्होंने अपने पिता के साथ उन्होंने जंगल और पहाड़ी क्षेत्रों में कठोर जीवन बिताया था |

महाराणा प्रताप पहाड़ी क्षेत्र की जनता के में काफी लोकप्रिय थे |

पहाड़ी लोग उन्हें कीका के नाम से बुलाते थे कीका का मतलब होता हा छोटा बच्चा|

मुगलों से कई बार युद्ध होने के कारण मेवाड़ की की हालत डगमगायी हुई थी |

मेवाड़ की आर्थिक और सामाजिक दृष्टी सही नहीं थी |

मेवाड़ के अनेकों राज्य पर मुगलों का कब्ज़ा हो

चुका था जिसकारण राज्य की आय के साथ-साथ प्रतिष्ठा में भी कमी आई थी |

महाराणा प्रताप जब तक जीवित रहे उन्होंने अकबर को एक से बढ़कर एक चुनोतियाँ दी |

मुगल सत्ता को टक्कर देने के लिये महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को संगठित करना शुरू कर दिया |

महाराणा प्रताप ने अपनी सेना में भीलों और सामंतों को रखा

अपनी सेना में भीलों और सामंतों को उच्च पद भी दिया  |

और गोगुन्दे नामक स्थान पर अपना निवास बनाया कुम्भलगढ़ इसलिये बनाया,

ताकि अकबर उन पर आसानी से आक्रमण कर सके| महाराणा प्रताप ने मुग़ल सत्ता के विरुद्ध

अपनी ताकत बढाई और सम्पूर्ण मेवाड़ में एक सूत्रता आई जो कि मुगलों के विरुद्द उठ खडी हुई |

हल्दी घाटी का युद्ध :

सन 1576 की बात है | अकबर की आँखों में मेवाड़ की स्वतंत्रता कांटें के सामान चुभ रही थी |

राणा प्रताप ने अकबर के अधीन आने से उससे कोई भी वैवाहिक सम्बन्ध बनाने से  मना कर दिया था |

अकबर ने उनको समझाने की कई कोशिशे कर ली पर वह उन्हें मना नहीं पाये |

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अंत में अकबर को केवल एक रास्ता नज़र आया वो था युद्ध |

21 जून 1576 ई. को दोनों सेनाओं के बीच युद्ध छिड़ गया |

मानसिंह अकबर की सेना के पक्ष में था |

इस लड़ाई में हजारों तरफ के अनेकों लोग बुरी तरह से मरे गये |

चारों तरफ के लोगों को बहुत नुकशान हुआ किसी का परिवार बिखर गया,

तो किसी के अपने इस युद्ध में बिछड़ गये |

राणा प्रताप की सेना में लूणकर्ण, रामशाह, ताराचन्द्र, पूंजा, हकीम सूर आदि शामिल थे |

वे अपनी सेना के सभी साथीयों के साथ के साथ सबको अपनी तलवार से चीरते हुये |

मानसिंह के हाथी के सामने तक पहुँच गये |

राणा प्रताप के एक घोड़ा था, जिसका नाम चेतक था |

चेतक ने मानसिंह के हाथी के दांतों पर अपने दोनों पैर रख दिये और राणा प्रताप ने अपने भाले से

मानसिंह पर वार कर दिया पर वह अपनी किस्मत से बच गया और शत्रु ने राणा प्रताप को घेर लिया |

मगर राजपूत वीर राणा प्रताप को शत्रुओं के बीच से निकलकर ले गये |

चेतक उनका घोड़ा घायल हो गया पर युद्ध चलता ही रहा |

गोगुन्दे पर अकबर की सेनाओं का अधिकार हो गया |

इसतरह राणा प्रताप को अपने राज्य का कुछ भाग खोना पड़ा |

राणा प्रताप ने हार नहीं मानी और वे मुगलों से लड़ते रहे और अपने राज्यों के कुछ हिस्से

भी वापस प्राप्त कर लिये , उन्होंने चावण्ड में एक नई राजधानी बनाई और रज्य में

नई सुव्यवस्था शुरू की |

उनका निधन :

अकबर महराणा प्रताप को झुकाने में कभी कामयाब नहीं हो पाया |

उन्होंने मरते दम तक अपनी वीरता का परिचय दिया,

और अकबर के अहंकार का मानमर्दन कर दिया |

19 जनवरी सन 1597 को राणा प्रताप का निधन हो गया |

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